छत्तीसगढ़ में कॉन्स्टेबल भर्ती प्रक्रिया पर लगी रोक को हाईकोर्ट ने हटा दिया है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ शहीद पुलिसकर्मियों और नक्सल प्रभावित सुरक्षाकर्मियों के बच्चों को ही छूट मिलेगी। कोर्ट ने कहा है कि सभी पुलिसकर्मियों के बच्चों को छूट देना गलत है। कोर्ट ने सिर्फ उन्हीं को छूट देने के निर्देश दिए हैं जो इसके हकदार हैं। बुधवार को जस्टिस राकेश मोहन पांडे की बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया जारी रखने के निर्देश दिए हैं। अब फिजिकल टेस्ट के बाद भर्ती प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी।
जाने क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, छत्तीसगढ़ में आरक्षक संवर्ग 2023-24 के लिए 5 हजार 967 पदों पर भर्ती निकली है। पुलिसकर्मियों के बच्चों को फिजिकल में छूट मिली थी। छूट देने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका लगी थी। इस पर 26 नवंबर को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने कहा था कि, पुलिसकर्मियों के बच्चों को लाभ देने नियमों में बदलाव कैसे हो सकता है।
फिजिकल टेस्ट में थी छूट
दरअसल, विज्ञापन जारी होने और फॉर्म भरने के बाद DG पुलिस ने सचिव को पत्र लिखा। पत्र में नियुक्ति प्रक्रिया में पुलिस विभाग में कार्यरत और EX SERVICEMEN कर्मचारियों के बच्चों को छूट देने का जिक्र था।
पत्र में सुझाव दिया गया कि, भर्ती नियम 2007 कंडिका 9(5) के तहत भर्ती प्रक्रिया के मापदंडों को शिथिल किया जा सकता है। इसमें फिजिकल टेस्ट के दौरान सीने की चौड़ाई और ऊंचाई जैसे कुल 9 पॉइंट्स में शामिल थे।
अपर सचिव ने इस सुझाव को स्वीकार भी कर लिया। इससे आहत होकर याचिकाकर्ता बेदराम टंडन ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। याचिकाकर्ता के बेटे ने राजनांदगांव में कॉन्स्टेबल जनरल ड्यूटी के लिए आवेदन दिया है।
छूट देना आम नागरिकों में भेदभाव
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया था कि, केवल अपने विभाग के कर्मचारियों को छूट देना आम नागरिकों के साथ भेदभाव है। ऐसे में इस भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। मामले में वकील की ओर से पेश किए गए दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने भर्तियों पर रोक लगा दी है।
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि, क्योंकि नियमों को शिथिल करने का लाभ सभी पदों पर मिलता, इसलिए सभी पदों पर होने वाली भर्ती पर रोक लगा दी गई थी।
राज्य शासन की तर्क पर हाईकोर्ट की आपत्ति
राज्य शासन ने कहा था कि, 2007 में नियम बनाया गया है कि पुलिस कर्मियों के परिवार के लोगों को भर्ती में छूट का प्रावधान है। इस पर हाईकोर्ट ने आपत्ति करते हुए कहा कि, नियम के तहत डीजीपी को अधिकार दिया गया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो मनमाना छूट देंगे।
ऐसे रूल्स बनाना पद का दुरुपयोग
हाईकोर्ट ने कहा था कि, छूट देने का नियम है इसका मतलब यह नहीं कि DGP कमेटी बनाकर ऐसा करे। नियम का लाभ सभी वर्ग के लोगों को मिलना चाहिए। ऐसा नहीं है कि SP और TI के बेटे-बेटियों को ही भर्ती में प्राथमिकता दी जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस अपने फायदे के लिए रूल बना लें, यह पद का दुरुपयोग है।